अफगान तालिबान के सीनियर कमांडर शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई ने भारत के साथ अच्छे संबंध विकसित करने के संकेत दिए हैं।
शेर मोहम्मद अब्बास दवारा जारी वीडियो मैसेज में अब्बास ने कहा है कि भारत इस पूरे क्षेत्र में महत्वपूर्ण है और तालिबान भारत के साथ आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक संबंधों को पूर्व की तरह आगे जारी रखना चाहता है। हालांकि भारत सरकार दवारा इस पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है।
भारत फिलहाल वेट एंड वाच की रणनीति अपना रहा है। दरअसल भारत तालिबान को सही अर्थो में तौल रहा है। तालिबान के आंतरिक गुटों की रणनीति को भी वाच कर रहा है।
निश्चित तौर पर तालिबान का एक धड़ा पाकिस्तान से स्वतंत्र विदेश नीति के पक्ष मे है, जिसमें मुल्ला बरादर जैसे लोग शामिल हैं।
लेकिन एक धड़ा हक्कानी नेटवर्क है, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के करीब है, भारत का घोर विरोधी है। लेकिन इस बात से भी इंकार नही कर सकते है कि इंडियन कारपोरेट सेक्टर लंबे समय से तालिबान से बैकडोर बातचीत करता रहा है।
तालिबान की पाकिस्तान से नजदीकी और भारत विरोध को लेकर लंबे समय से बहस हो रही है।
लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि पिछले दरवाजे से तालिबान और इंडियन कारपोरेट सेक्टर के चैनल सालों से खुले हुए हैं। इसमें भारतीय कारपोरेट सेक्टर का अहम योगदान है, जिनकी रूचि अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों में रही है।
इसमें वे कारपोरेट भी शामिल हैं, जिनकी रूचि तुर्केमेनिस्तान और कैस्पियन सी के उर्जा परियोजना में रही है।
कारपोरेट सेक्टर 100 साल की रणनीति बनाकर चलता है। वैसे में यह सोचना कि भारतीय कारपोरेट सेक्टर तालिबान के साथ बैक चैनल डिप्लोमेसी नहीं कर रहा होगा, गलत होगा?
इंडियन कारपोरेट सेक्टर की रूचि अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों में रही है। इसमें लोहा, तांबा और लिथियम शामिल हैं। अफगानिस्तान में इंडियन कारपोरेट सेक्टर ने कुछ निवेश भी किया है। नाटो सेना की मौजूदगी के बाद भी इंडियन कारपोरेट सेक्टर अफगानिस्तान में तालिबान की मौजूदगी को महसूस करता रहा है। यही कारण है कि इंडियन कारपोरेट सेक्टर ने कुछ पाकिस्तानी नेताओं के साथ अपने बेहतर संपर्कों के माध्यम से तालिबान से बैक डोर डिप्लोमेसी जारी रखी।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जिनका स्टील कारोबार में लंबा अनुभव रहा है, इंडियन कारोपेरट सेक्टर के लिए उपयोगी रहे।गौरतलब है कि नवाज शरीफ ने 1990 के दशक में जब दूसरी बार नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने अमेरिकी तेल कंपनी ऊनाकोल के लिए भी तालिबान से लॉबिंग की थी। तालिबान से ऊनाकोल के लिए लॉबिंग के लिए शरीफ ने चौधरी निसार अहमद खान को पेट्रोलियम मंत्री बनाया था, जिनके आईएसआई और तालिबान के कमांडरों से अच्छे संबंध थे।
ऊनाकोल उस जमाने में तुर्केमेनिस्तान से लेकर पाकिस्तान के मुल्तान तक गैस पाइप लाइन बनाने की परियोजना पर काम शुरू करने वाली थी। ऊनाकोल कंपनी दक्षिण एशिया के बाजार में तुर्कमेनिस्तान गैस को लाने के लिए गैस पाइप लाइन बिछाने की तैयारी कर रही थी।
दिलचस्प बात यह है कि नवाज शरीफ से पहले 1993 से 1996 तक बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री थी। भुट्टो अमेरिकी कंपनी ऊनाकोल के खिलाफ लॉबिंग कर रही थी, वे अर्जेन्टिना की कंपनी ब्रिदास के समर्थन में तालिबान से लॉबिंग कर ही थी।
2005 से ही भारतीय कारपोरेट सेक्टर, जिसकी रूचि तेल और गैस में रही है, तालिबान के साथ बैकडोर से बातचीत करते रहे हैं। इसके लिए भारतीय कारपोरेट सेक्टर और तालिबान के बीच मध्यस्थ सऊदी अरब का राज परिवार रहा है। सऊदी राज परिवार के प्रभाव में तालिबान खासा रहा है। 1990 के दशक मे तालिबान सऊदी अरब के प्रिंस तुर्की के खासा नजदीक था, जो तेल कारोबार में खासा रूचि रखते थे। उस जमाने में अर्जेन्टिना की कंपनी ब्रिदास को प्रिंस तुर्की का समर्थन अफगानिस्तान से होकर गुजरने वाली प्रस्तावित पाइप लाइन को लेकर था।
दरअसल सऊदी अरब भी तुर्केमेनिस्तान से अफगानिस्तान होकर पाकिस्तान के मुल्तान तक आने वाली गैस पाइप लाइन में रूचि रखता रहा है, जो आज प्रस्तावित तापी पाइप लाइन है। यह पाइप लाइन भारत तक आएगा।
1990 के दशक में प्रस्तावित तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान गैस पाइप लाइन में उर्जा क्षेत्र की उन अमेरिकी कंपनियों की भी रूचि थी, जो भारत में उर्जा क्षेत्र में निवेश कर रहे थे। 1990 के दशक में महाराष्ट्र में उर्जा क्षेत्र मे निवेश करने वाली एक कंपनी की भारी रूचि इस प्रस्तावित पाइप लाइन में थी, जो पाकिस्तान के समुद्री तट से तुर्कमेनिस्तान के गैस को भारत तक लाना चाहती थी।
भारतीय कारपोरेट सेक्टर का मिडिल ईस्ट की तेल कंपनियों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। भारत उर्जा का एक बड़ा आयातक देश है। भारत तेल का तीसरा बड़ा आयातक देश है। भारत वर्तमान में प्रतिमाह लगभग 15 मिलियन टन तेल का आयात कर रहा है। इस समय तेल का सबसे बड़ा आयातक देश चीन है। भारत को निकट भविष्य में तेल और गैस की जरूरत पड़ती रहेगी। यही कारण है कि कई बड़े तेल निर्यातक इस्लामिक देश भारतीय तेल बाजार को नहीं खोना चाहते हैं। भारत को तेल निर्यात करने वाले महत्वपूर्ण में देशों सऊदी अरब, संयुक्त अऱब अमीरात, इऱाक और ईऱान शामिल हैं।
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से भारत ने 2020 में कुल 60 मिलियन टन तेल का आयात किया। यही नहीं दोनों मुल्क भारत के तेल सेक्टर में निवेश भी कर रहे हैं। इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको ने मुकेश अंबानी की रिलांयस इंडस्ट्री में अरबों डालर का निवेश इसलिए ही किया है कि भारतीय उर्जा बाजार पर उसकी पकड़ मजबूत रहे। वैसे में सऊदी अरब औऱ संयुक्त अरब अमीरात कभी नहीं चाहेगा कि तालिबान भारत से संबंध खराब करे।
सच्चाई तो यह है कि भारतीय उर्जा बाजार पर ईऱान की नजर हमेशा रही है। ईरान से भी भारत तेल आयात करता रहा है। हालांकि ईऱान पर दुबारा अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंध लगने के कारण भारत अमेरिकी दबाव में आ गया।
भारत ने ईऱान से संबंध खराब किए। हालांकि भारत का सेंट्रल एशिया और अफगानिस्तान तक जाने का एकमात्र रास्ता ईऱान ही है। इसलिए चाहबहार पोर्ट का महत्व भारत के लिए काफी है, जहां भारत ने निवेश किया है। चाहबहार पोर्ट भारत के लिए अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया का एंट्री प्वाइंट है। क्योंकि पाकिस्तान अपना ट्रेड रूट भारत के लिए नहीं खोल रहा है।
ईऱान चाहेगा कि भारत अमेरिकी दबाव से मुक्त होकर अपने तेल बाजार को ईऱान के लिए पहले की तरह खोले। इसके बदले ईऱान तालिबान से अपने अच्छे संबंधों का इस्तेमाल कर भारत और तालिबान के बीच मध्यस्थता करने की कोशिश करेगा।
अब अंत में बात कतर की। कतर की राजधानी दोहा में इस समय तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत चल रही है। दरअसल लंबे समय से कतर की राजधानी दोहा में ही तालिबान का राजनीतिक कार्यालय स्थापित है। कतर और भारत के संबंध अच्छे है। कतर से भी भारत गैस तेल का आयात करता है। वैसे में कतर भी चाहेगा कि भारत और तालिबान के बीच कोई टकराव पैदा न हो।
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— Team PT
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