आखिरकार क्वाड की पहली औपचारिक बैठक अमेरिका में संपन्न हो गई। अमेरिका, जापान, भारत और आस्ट्रेलिया ने इँडो-पैसेफिक में आपसी सहयोग को और मजबूत करने का फैसला लिया। इस बैठक पर चीन की नजर थी और चीन का मीडिया प्रतिक्रिया भी दे रहा था।
हालांकि जिस समय अमेरिका में क्वाड की बैठक की तैयारी हो रही थी, उसी समय चीन ने ताइवान की सीमा में 19 फाइटर एयरक्राफ्ट भेज दिए थे। चीन ने ताइवानी सीमा में फाइटर जेट भेज साफ संकेत दिए कि चीन इंडो-पैसेफिक में दूसरों के इलाके में अतिक्रमण जारी रखेगा।
चीन इस इलाके में फ्रीडम ऑफ नेविगेशन को चुनौती देता रहेगा। दरअसल चीन की यही हरकत क्वाड की जरूरतों को मजबूत करता है। लेकिन क्वाड की जरूरतों में बराबर की भागीदारी का सिदांत लागू करना जरूरी है। सहयोग एकतरफा होना खतरनाक होगा।
चारो देशों को एक दूसरे के हितों की रक्षा के सिदांत पर काम करना होगा। हालांकि अफगानिस्तान में भारतीय हितों की रक्षा करने में अमेरिका विफल रहा। अमेरिका ने अफगानिस्तान में अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखते हुए काबुल पर पाकिस्तान की मजबूती को एक तरह से सहयोग देने का भागीदार बन गया।
इंडो-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड को सिर्फ मिलिट्री एलांयस के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। अगर क्वाड के सदस्य देश ईमानदार होंगे तो अन्य क्षेत्र में आपसी सहयोग बढाएंगे। चाहे वो क्लाइमेट चेंज हो या कोई महामारी। लेकिन क्वाड-2 की सफलता आपसी विश्वास और सहयोग पर ही निर्भर करेगा। अमेरिका सिर्फ भारत और जापान को चीन की बढती ताकत के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहेगा तो इसकी सफलता संदिग्ध होगी।
हाल ही में चीन ने नए समुद्री नियम लागू कर दिए है। यह इंडो पैसेफिक क्षेत्र में फ्रीडम आफ नेविगेशन को भारी चुनौती है। चीन के नए समुद्री कानूनों के तहत अब चीन की समुद्री सीमा से गुजरने वाले सभी समुद्री जहाजों को चीनी अधिकारियों को तमाम तरह की जानकारियां देने होंगे |
इससे पहले फरवरी 2021 में चीन ने एक कानून बनाया गया था, जिसके अंतर्गत चाइनीज कोस्ट गार्ड को विदेशी समुद्री जहाजों पर हथियार इस्तेमाल करने के लिए अधिकृत कर दिया था| दरअसल यही समुद्री कानूनों से इंडो पैसेफिक क्षेत्र की स्थिरता को खतरा है| चीन के नए समुद्री कानून इंडो पैसेफिक में चीनी वर्चस्व बनाए रखने का बड़ा हथियार है|
भारत को चीन की तरफ से अब दोहरा खतरा है । लद्दाख से लेकर अरूणाचल प्रदेश की सीमा तक जमीन पर चीन भारतीय इलाके में घुसपैठ कर रहा था। चीन ने मलक्का सट्रेट से नीचे अपनी उपस्थिति दर्ज कराना का फैसला 21वीं सदी की शुरूआत में ही लिया था।
2006 के बाद चीन हिंद महासागर से लेकर पश्चिमी एशिया के समुद्र तक आक्रमक हो गया चीन ने अफ्रीका से लेकर एशिया तक के समुद्र में सैन्य मौजूदगी को बढाने के लिए तेजी से काम शुरू कर दिया था। चीन ने जिबूती , सूडान, यूएई(खलीफा पोर्ट), मिश्र (सोखना पोर्ट), पाकिस्तान ( ग्वादर, कराची), श्रीलंका (हेबनटोटा और कोलंबो) में बंदरगाहों का निर्माण कार्य पूरा कर लिया|
केन्या का लामू बंदरगाह और मुंबासा बंदरगाह के विकास काम चीन शुरू कर चुका है। तंजानिया के दार-ए-सलाम बंदरगाह का विकास का काम चीन शुरू कर चुका है। बांग्लादेश और म्यांमार में भी एक-एक बंदरगाह का विकास चीन कर रहा है। भविष्य में चीन की सेना की उपस्थिति इन बंदरगाहों पर जरूर नजर आएगी।
हालांकि क्वाड का एक मुख्य उद्देश्य एशिया-पैसेफिक में फ्रीडम आफ नेविगेशन है। अहम सवाल यह है कि फ्रीडम आफ नेविगेशन पर चीनी खतरे के चपेट में साउथ-ईस्ट एशिया के कई देश भी है। पर चिंता सिर्फ भारत और जापान को ही क्यों है ? दक्षिण चीन सागर में समुद्री सीमाओं को लेकर चीन का विवाद वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया फिलिपींस से भी है। लेकिन ये मुल्क क्वाड के सदस्य क्यों नहीं बने? क्कया वे इसे अमेरिकी हितों वाला संगठन मान कर चल रहे है?शायद भविष्य मे क्वाड का विस्तार हो ?
दक्षिण चीन सागर में सिर्फ फ्रीडम ऑफ नेविगेशन ही चिंता का विषय नहीं है। दरअसल यह इलाका संसाधनों के नजरिए से भी अमीर है। दक्षिण चीन सागर में 7.7 बिलियन बैरल प्रमाणिक तेल रिजर्व है। हालाकिं अनुमानित रिजर्व 28 बिलियन बैरल हो सकता है।
भारतीय और अमेरिकी तेल कंपनियों के आर्थिक हित दक्षिण चीन सागर में है, इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है। अगर समुद्री व्यापार के हिसाब से देखे तो दक्षिण चीन सागर महत्वपूर्ण समुद्री रूट है। इस रास्ते से भारत का 200 बिलियन डालर का सलाना कारोबार होता है। जबकि इस रास्ते 3 ट्रिलियन डालर तक का वैश्विक कारोबार है।
क्वाड भारत के लिए जरूरी है। पर बराबरी के भागीदारी के सिदांत पर जरूरी है। भारत के समुद्री क्षेत्र और इससे लगते हुए इलाके में चीन का दबदबा भारत के लिए अब दोहरा खतरा है। वैसे में भारत का क्वाड में शामिल होना एक अच्छा कदम है। लेकिन कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना होगा।
जापान ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका बड़ी आर्थिक शक्तियां है। भारत की आर्थिक स्थिति इन देशों के बराबर नहीं है। वैसे में भारतीय भूगोल का सहयोग अगर चीन से निपटने के लिए सहयोगी देश लेना चाहते है तो उन्हें भारत को भई मदद करनी होगी। ठीक उसी तर्ज पर जैसे अफगानिस्तान में वार अगेंस्ट टेरर के खिलाफ हुई लड़ाई में अमेरिका ने पाकिस्तान का सहयोग लिया।
भारत अगर क्वाड में जाकर आर्थिक जिम्मेवारियों को निभाएगा तो यह भारत के हित में नहीं होगा। क्वाड में शामिल होकर अकेले अमेरिकी हितों की रक्षा भारत के लिए नुकसानदायक होगा। भारत को इसका नुकसान आर्थिक रूप से होगा। जियो-पॉलिटिक्स में भी भारत को इसका नुकसान होगा।
हालांकि अभी तक अमेरिकी कुटनीति भारत के लिए बहुत विश्वसनीय नहीं रही है। क्वाड में भारत के सदस्य होने के बावजूद अमेरिका ने अफगानिस्तान में हुई शांति वार्ता में भारत को शामिल नहीं किया। दोहा में अफगान शांति वार्ता के दौरान भारत को बुलाया तक नहीं गया। जबकि भारत ने अफगानिस्तान मे 3 अरब डालर का निवेश कर डाला।
जब काबुल पर अफगान तालिबान का कब्जा हुआ तो भारत को अपना दूतावास तक बंद करना पड़ा। यहां भी अमेरिका ने भारतीय हितों से ज्यादा पाकिस्तानी हितों को तव्वजो दी। अमेरिका ने तालिबान के साथ हुई बातचीत में भारतीय हितों पर कहीं भी चिंता व्यक्त नहीं की। वैसे में इंडो पैसेफिक में भारत अगर एकतरफा अमेरिकी हितों को ही लाभ पहुंचाएगा तो भारत को नुकसान होगा। क्वाड जरूरी है, पर एक दूसरे के हितों का बराबर ख्याल रखेंगे तभी इसकी सफलता तय होगी।
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— Team PT
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