अफगानिस्तान में तालिबान जल्द ही अंतरिम सरकार बनाने जा रहा है। अंतरिम सरकार के मॉडल पर लगातार विचार विमर्श हो रहा है। क्या अफगान तालिबान अमेरिकी देखरेख में विकसित अफगान सरकार के ढांचे को पूरी तरह से खत्म कर देगा, इस पर भी बहस हो रही है।
क्या तालिबान में कुछ बदलाव आया है, नई सरकार के गठन में लोकतांत्रिक ढांचे का महत्व बना रहेगा, इस पर भी बहस हो रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि तालिबान ईऱानी शासन का मॉडल अपनाएगा। कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि तालिबान सऊदी अरब के तर्ज पर अफगानिस्तान में शासनतंत्र विकसित करेगा।
हालांकि तालिबान के सामने बड़ी चुनौती यही है कि जनजातीए विभाजन से पीड़ित अफगानिस्तान में एक इन्कलूसिव गवर्नमेंट का गठन कैसे किया जाए? क्योंकि ताजिक जनजाति ने अभी तक तालिबान के सामने सरेंडर नहीं किया है। पंजशीर में अहम मसूद की सेना तालिबान से जंग लड़ रही है।
फिलहाल आ रही खबरों के मुताबिक अंतरिम सरकार का मुखिया मुल्ला बरादर होगा। बरादर के अधीन कई मंत्री काम करेंगे। महत्वपूर्ण मंत्रालय तालिबान के बड़े कमांडरों को मिलेगा। इनमें मुल्ला मोहम्मद याकूब, शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजाई, सिराजुद्दीन हक्कानी, खलील हक्कानी, अनस हक्कानी आदि शामिल होंगे।
लेकिन इस अंतरिम सरकार को गाइडेंस तालिबान का मुखिया हैबतुल्लाह अखूंजाद से लेना होगा। अफगानिस्तान का सुप्रीम कमांडर हैबतुल्लाह अखूंजाद होगा, जो मुल्ला उमर के तर्ज पर लीडर आफ फेथफुल होगा। तालिबान-1 के शासनकाल में मुल्ला उमर लीडर आफ फेथफुल था।
हालांकि अंतरिम सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर कब्जा पश्तूनों का ही होगा। तालिबान के पश्तून कमांडरों के पास महत्वपूर्ण मंत्रालय होंगे।
अफगानिस्तान की बाकी जनजातियां, जिनकी संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है, उनकी सरकार में भागीदारी क्या होगी, फिलहाल तय नहीं है। ताजिक, हजारा और उजबेक जनजातियों के प्रतिनिथियों की अंतरिम सरकार में क्या भूमिका होगी, फिलहाल क्लीयर नहीं है।
वहीं महिला अधिकारों का घोर विरोधी तालिबान अंतरिम सरकार में महिलाओं को कितनी जगह देगा, यह समय बताएगा।
कहा जा रहा है कि अफगान तालिबान का शासन ईऱान मॉडल पर होगा। ईरान के आयतुल्लाह खमैनाई के तर्ज पर हैबतुल्लाह अखूंजाद अफगानिस्तान का सुप्रीम लीडर होगा। हालांकि ईऱानी शासन मॉडल के आधार पर तालिबान शासन करेगा तो उसे बहुत कुछ और करना होगा। क्योंकि ईऱान में राष्ट्रपति का चुनाव होता है। राष्ट्रपति के चुनाव में आम ईरानी मतदाता भाग लेता है। ईऱान के राष्ट्रपति पद पर अयतुल्लाह खमैनाई मनोनयन नहीं करते हैं।
ईऱान में राष्ट्रपति पद का चुनाव होता है, जो प्रतिदिन के शासन के लिए जिम्मेवार होता है। राष्ट्रपति के चुनाव में कई उम्मीदवार अपने भाग्य को अजमाते हैं। ईऱान की राजनीति में कंजरवेटिव और लिबरल सारे उम्मीदवार भाग लेते है। ये एक दूसरे के विरोध में चुनाव भी लड़ते है। लेकिन क्या तालिबान इस मॉडल को अपनाएगा? राष्ट्रपति या शासन करने के लिए निर्धारित सर्वोच्च पद के लिए यहां चुनाव होंगे? यह अहम सवाल है।
ईरान में आयतुल्लाह खमैनाई की नीतियों से मतभेद रखने वाले नेता भी राष्ट्रपति चुनावों में भाग लेते रहे हैं। इसी साल ईऱान में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुआ। आयतुल्लाह खामेनई के समर्थक इब्राहिम रईसी चुनाव जीत गए। लेकिन उनके खिलाफ लिबरल विचारों वाले उम्मीदवार अब्दुल नासेर हेम्माती भी चुनाव लड़े जो खमैनी से कई मुद्दों पर मतभेद रखते हैं। हालांकि वे चुनाव हार गए।
ईरान की राजनीति में उदारवादियों का एक गुट सक्रिय है। ये गुट कटटरता का विरोधी है। सुप्रीम लीडर खामेनई की नीतियों के खिलाफ होने के बावजूद वे चुनावों में भाग लेते हैं, राजनीति करते हैं। ईऱान के वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी कट्टर विचारों के हैं, उन्हें खमैनाई समर्थक माना जाता है। जबकि रईसी से पहले ईऱान के राष्ट्रपति रहे हसन रोहानी लिबरल विचारों के थे। रोहानी के कई मुद्दों पर ईऱान के सुप्रीम लीडर खामेनई से मतभेद हुए। ईरान में संसद (मजलिस) भी है, जिसमें 290 सदस्य है। बेशक इसमें बहुमत सिदांतवादियों का है, लेकिन इसमें सुधारवादी भी चुनकर आए हुए है।
हालांकि तर्क यह भी दिया जा रहा है कि तालिबान का शासन का काफी हद तक सऊदी अरब के मॉडल पर होगा जहां राजा ही विधायिका है और राजा ही कार्यपालिका है। राज परिवार के सदस्य महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर काबिज हैं। महत्वपूर्ण फैसलों के लिए कहने को एक परिषद से सलाह ली जाती है, जिसमें कई कबीलों के चीफ सदस्य है। लेकिन अंतिम फैसला किंग और प्रिंस करते है।
पिछले तीस सालों में किंग अब्बदुल्ला और किंग सलमान के परिवार के सदस्य ही सारे महत्वपूर्ण फैसले सऊदी अरब में लेते रहे हैं। यहां लोकतंत्र नहीं है, कोई चुनाव नहीं होता है।
लेकिन तालिबान इससे थोड़ा अलग इसलिए भी है कि तालिबान की शूरा पदति में मौजूद सदस्य तालिबान के चीफ को चुनते रहे हैं। जैसे मुल्ला उमर की मौत के बाद क्वेटा शूरा ने मुल्ला अख्तर मंसूर को लीडर चुना। अख्तर मंसूर की मौत के बाद अंखूजाद को शूरा ने अपना लीडर चुना। जबकि सऊदी अरब की व्यवस्था में राजगद्दी परिवार से परंपरा में मिलती रही है।
अब सवाल यही है कि अगर तालिबान शासन का ईरानी मॉडल चुनेगा तो क्या अफगानिस्तान में राष्ट्रपति पद बहाल किया जाएगा, यह एक अहम सवाल है। अगर राष्ट्रपति पद बहाल किया गया तो इसके लिए चुनाव की प्रक्रिया क्या होगी? क्या आम जनता के वोट से राष्त्रपति चुनाव जाएगा? इसके लिए आम अफगान नागरिक मतदान करेंगे?
क्या तालिबान का विश्वास संसदीय लोकतंत्र में है? दरअसल 2004 में लागू किए गए अफगानिस्तान के संविधान के हिसाब से अफगानिस्तान में संसद भी है। यहां के संसदीय लोकतंत्र में दो सदन, उच्च सदन (मेशरानो जिरगा) और निम्न सदन (वोलेसी जिरगा) है। 2004 के संविधान के हिसाब से यहां राष्ट्रपति का चुनाव भी होता रहा है। हामिद करजई और अशरफ घनी चुनाव से राष्ट्रपति चुने गए, जिसमें आम अफगान नागरिकों ने वोट किया।
समय बताएगा कि तालिबान अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था से शासन चलाएगा या क्वेटा शूरा (काउंसिल व्यवस्था) के तर्ज पर ही एक शूरा का गठन कर तालिबान शासन चलाएगा? फिलहाल अफगानिस्तान में बनने वाली अंतरिम सरकार से संबंधित फैसले क्वेटा शूरा ही ले रही है। क्वेटा शूरा में तालिबान के मजबूत कमांडर सदस्य है। क्वेटा शूरा का गठन 2002 में किया गया था।
अमेरिकी हमले के बाद अफगानिस्तान से भाग कर पाकिस्तान में शरण लिए हुए अफगान तालिबान के कमांडरों ने क्वेटा शूरा का गठन किया था, जो तालिबान की नीतियों से संबंधित महत्वपूर्ण फैसले लेता था। अभी तक 2004 के संविधान के हिसाब से अफगानिस्तान में राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न होता रहा है। अफगानिस्तान के संसद में महिलाओं को भी हक मिला है। अफगान अपर हाउस में महिलाओं की भागीदारी 21 प्रतिशत थी। जबकि लोवर हाउस में महिलाओं की भागीदारी 28 प्रतिशत थी।
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— Team PT
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